नसीमुद्दीन बसपा से बाहर तो क्या बढ़ेगा अंसारी बंधुओं का कद

गाजीपुर। बीते विधानसभा चुनाव में बिछाई गई बिसात की गोटी बसपा में अब हार से नाराज मायावती को साधने के लिए चली जाने लगी हैं। नसीमुददीन सिदिद्की व उनके पुत्र को अचानक बसपा से बाहर का रास्ता दिखाना इसी का परिणाम माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ एक लाबी काफी समय से उन्हें मात देने में लगी थी लेकिन वह अपने मसूंबे में नसीमुद्दीन का एकमात्र अल्पसंख्यक नेता होने के कारण कामयाब नहीं हो पा रही थी। विधानसभा चुनाव से पहले ऐन वक्त पर सपा से ठोकर खाए अंसारी बंधुओं को विपक्षी खेमा हाथों—हाथ लेकर बसपा में नसीमुद्दीन के खिलाफ शतरंज की बिसात चुनाव से पहले ही बिछा दी। उसमें चार—चांद तब और लग गया, जब बसपा को विधानसभा चुनाव में काफी निराशा हाथ लगी। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में बसपा की दुर्गति पार्टी के कैडर पचा नहीं पा रहे थे। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि पार्टी में विद्रोह की स्थिति भी बन गई थी। जिसे दूर करने के लिए माना जा रहा था कि बसपा में अपना पल्ला झाड़ने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती किसी ​दिग्गज को बलि का बकरा बना सकती हैं। हालांकि दूसरी तरफ नसीमुद्दीन के दल से बाहर होने के बाद अंसारी बंधुओं का कद बसपा में बढ़ सकता है। इसकी चर्चा जोर पकड़ने लगी है। पूर्वांचल में मुस्लिम चेहरे के रूप में अंसारी बंधु काफी चर्चित हैं। बीते चुनाव में भाजपा की आंधी में भी मउ सदर से मुख्तार अंसारी ने चुनाव जीतकर अपना लोहा मनवा दिया है। हालांकि उनके भाई शिवगतुल्लाह अंसारी को अपनी परंपरागत सीट मुहम्मदाबाद से भाजपा विधायक स्व. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय से हार का सामना करना पड़ा था। अंसारी बंधुओं का पूर्वांचल के अल्पसंख्यक समुदाय में खासा असर माना जाता है। इसको मौके दर मौके उन्होंने साबित भी कर दिखाया है। मउ और गाजीपुर की राजनीति में दशकों से उनका असर है। वाराणसी संसदीय सीट से भी मुख्तार अंसारी भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को चुनौती देकर उन्हें भारी टक्कर दिये थे। हालांकि उस चुनाव में मुरली मनोहर जोशी मुख्तार अंसारी को हराने में कामयाब रहे। बसपा में चल रहे अंर्तकलह का लाभ अंसारी बंधुओं को मिल सकता है।