हर जीत के बाद गाजीपुर के लोगों का भरोसा हार गए मनोज सिन्हा, 2019 में विकास का सहारा

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अंसारी बंधुओं से टक्कर लगभग तय,एक दशक बाद दो धुर विरोधी आमने सामने

संतोष राय

संग्राम 2019
वाराणसी। पूर्वांचल की राजनीति मे रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा की अच्छी खासी राजनीतिक हैसियत है। गाजीपुर से वह अपनी तीसरी पारी खेल कर विकास की फसल के सहारे चुनाव मैदान में आएंगे। हालांकि मनोज सिन्हा के राजनैतिक अतीत को देखा जाए तो हर जीत के बाद जनता ने उनपर भरोसा नहीं दिखाया , जिससे उन्हें हार का सामना भी भरपूर करना पड़ा है।2004 के चुनाव मे अफजाल अंसारी से हार के बाद मनोज सिन्हा के लम्बे राजनैतिक वनवास के बाद जब 2014 में जनता के आशीर्वाद से राजनैतिक पर उगे तो मनोज सिन्हा ने दिल्ली सरकार के खजाने का रुख गाजीपुर के तरफ मोड़ दी। अब मनोज सिन्हा विकास के लम्बे शिखर पर खड़े है। वहीं भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए गठबंधन भी काफी मंथन कर रहा है । मनोज सिन्हा को रोकने के लिए सपा बसपा गठबंधन अफजाल अंसारी पर दांव लगाने जा रहा है जिसका दावा उनके समर्थक कर रहे है। अंसारी बंधुओं को मनोज सिन्हा का धुर विरोधी माना जाता है।
खट्टा मीठा रहा मनोज सिन्हा का राजनीतिक सफर
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद मनोज सिन्हा ने अपने गृह जिले से 1984 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लडा़। कांग्रेस लहर में जैनुल बशर सांसद हुए।1991मे फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मनोज सिन्हा को कामरेड विश्वनाथ शास्त्री ने हरा कर भाकपा की राजनीति में जान डाल दी।1996 मे मनोज सिन्हा ने गाजीपुर में पहली बार कमल खिला दिया।1998 मे सपा के ओम प्रकाश से मनोज सिन्हा को हार तो मिली लेकिन एक वर्ष बाद 1999 के चुनाव में फिर गाजीपुर के चुनाव मे जनता ने मनोज सिन्हा पर भरोसा जताया केन्द्र में भाजपा की स्व.अटल बिहारी बजपेयी के नेतृत्व में सरकार भी बनी ।2004 के चुनाव मे अफजाल अंसारी सपा से चुनाव मैदान में आए और गाजीपुर जनपद का सर्वाधिक मत 415687 वोट हासिल कर श्री सिन्हा को पटकनी दे दिया।2009में मनोज सिन्हा बलिया से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन सपा के नीरज शेखर ने धूल चटा दी। मनोज सिन्हा को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। इस हार का मलाल मनोज सिन्हा को है।2014 की जीत के साथ विकास की गंगा तो गाजीपुर मे बही लेकिन मुहम्मदाबाद व जहूराबाद किनारे खड़ा रह गया।