रिपोर्ट: सचिन
फाइनल में 362 रन की पहली पारी बढ़त? घरेलू क्रिकेट में ऐसे एकतरफा संतुलन कम ही दिखते हैं। बेंगलुरु में चल रहे दलीप ट्रॉफी 2025 फाइनल ने तीसरे दिन यही तस्वीर साफ कर दी—सेंट्रल जोन साउथ जोन पर लगभग शिकंजा कस चुका है। पहली पारी में 511 का पहाड़, जवाब में साउथ जोन सिर्फ 149, और फॉलो-ऑन के बाद दूसरी पारी 129/2 तक—कहानी सीधी है: सेंट्रल ने बल्ले और अनुशासन से मैच को अपने पलड़े में डाल दिया है।
हाइलाइट्स और मैच की तस्वीर
सेंट्रल जोन की बैटिंग की रीढ़ दो पारियों ने बनाई—कप्तान राजत पाटीदार का 115 गेंदों पर 101 और यश राठौड़ का 194। पाटीदार ने आक्रामक शुरुआत देकर गेंदबाज़ों पर शुरुआती दबाव तोड़ा, फिर राठौड़ ने धैर्य और शॉट-चयन से पारी को विशाल स्कोर तक पहुंचा दिया। 145.1 ओवर में 511 का स्कोर सिर्फ रन नहीं, मानसिक बढ़त भी था।
मध्यक्रम में सारांश जैन के 69 रन और निचले क्रम में दीपक चाहर के 37 रन कम मौकों पर अधिक असर डालने वाले रहे। टीम ने तीसरे दिन 384/5 से खेलना शुरू किया था, यानी बढ़त पहले ही 235 तक पहुंच चुकी थी। वहां से सेंट्रल ने गलती नहीं की—स्ट्राइक रोटेशन, मौके की बाउंड्री और टेल से साझेदारी—सब कुछ टिक-टॉक की तरह चला।
साउथ जोन के गेंदबाज़ों ने मेहनत की पर असर सीमित रहा। लेफ्ट-आर्म सीमर गुरजपनीत सिंह ने 4/124 लेकर मोर्चा संभाला, वहीं लेफ्ट-आर्म स्पिनर अंकित शर्मा के खाते में 4/180 आए। आंकड़े बताते हैं कि विकेट मिले, मगर नियंत्रण वैसा नहीं रहा कि सेंट्रल को 400 से नीचे रोका जा सके। जब रफ्तार और लाइन-लेंथ दोनों पर पाटीदार—राठौड़ जैसे बैटर सेट हो जाएं, तो विकेट लेना मुश्किल हो जाता है।
जवाब में साउथ जोन की पारी 149 पर ढह गई। यहां सेंट्रल की गेंदबाज़ी की खूबी थी—दबाव। पहले दस-पंद्रह ओवर में लगातार जकड़, फिर ढीली गेंदों की संख्या कम, और फील्डिंग में ऊर्जा। फाइनल में यही फर्क बनता है—आप विपक्ष को हर समय महसूस कराते रहें कि रन आसान नहीं हैं।
362 की बढ़त के बाद फॉलो-ऑन मिला और दूसरी पारी में साउथ जोन की शुरुआत सतर्क रही। ओपनर आर स्मरण ने 37* तक धैर्य दिखाया और रिकी भुई के साथ साझेदारी ने टीम को 129/2 तक पहुंचाया। स्कोरबोर्ड पर 233 का घाटा अभी भी बड़ा है, लेकिन कम से कम विकेट हाथ में हैं और तीसरे दिन का अंत लड़ाई की मुद्रा में हुआ।
सेंट्रल के लिए तेज गेंदबाज़ सेन ने दूसरी पारी में किफायती स्पैल डाला—22 रन देकर 1 विकेट—और दूसरे छोर से भी दबाव बना रहा। यह वही टेम्पलेट है जो पहली पारी में दिखा: रन-फ्लो पर लगाम और इंतजार कि बल्लेबाज़ गलती करे।
पिच की बात करें तो पहले दो दिनों की सुबहों में मदद सीमरों को मिली, मगर तीसरे दिन सतह सपाट दिखी। गेंद पुरानी होने पर सीम मूवमेंट घटा और शॉट खेलना आसान होता गया। यही वजह रही कि राठौड़ जैसे सेट बैटर ने लंबे समय तक एक-एक सत्र नियंत्रण में रखा और बाद में साउथ की दूसरी पारी में भी शुरुआती कुछ घंटों में विकेट गिरना थमा।
अब तस्वीर क्या कहती है? साउथ जोन को चौथे दिन दो एजेंडा साथ लेकर उतरना होगा—पहला, पहले सत्र में बिना विकेट गंवाए घाटा कम करना; दूसरा, मिड-सेशन में रन-रेट 2.5 से ऊपर रखते हुए थकान फैक्टर सेंट्रल पर डालना। दूसरी ओर सेंट्रल की प्लेबुक साफ है—सुबह की नई गेंद खिड़की को भुनाएं, स्लिप-गली सक्रिय रखें और 40-50 रन के भीतर 2-3 विकेट झटकें।
राठौड़ की 194 रन की पारी इस फाइनल का निर्णायक पल बन सकती है। मुश्किल सतह पर शुरुआती सतर्कता, फिर कवर्स और मिड-विकेट के बीच गैप में सधे ड्राइव, और सबसे अहम—गलत शॉट से बचना। उन्होंने लगभग दोहरा शतक मिस किया, पर टीम को ऐसी लीड दे दी कि अब सेंट्रल हर सेशन में मैच डिक्टेट कर रहा है।
कप्तान राजत पाटीदार का रोल उतना ही अहम रहा। 115 गेंदों पर 101 रन सिर्फ स्कोर नहीं, गेम-टेम्पो था—उन्होंने बोल्ड फील्ड सेटिंग्स को तोड़ते हुए स्ट्राइक रोटेट की, जिससे साउथ के गेंदबाज़ कभी एक लाइन पर टिक नहीं पाए। फाइनल में यह नेतृत्व दिखता है—जोखिम समझदारी से लेना, ताकि दूसरे बैटर के लिए हालात आसान बने रहें।
साउथ जोन की चुनौती यहीं से कठिन दिखती है। 233 और रन मिटाने के लिए कम-से-कम दो बैटर को लंबा खेलना होगा। भुई और स्मरण ने जो धैर्य दिखाया है, वह चौथे दिन सुबह की पहली स्पेल में कड़ी परीक्षा से गुजरेगा। अगर यहां 25-30 ओवर तक बिना बड़ा नुकसान टिक गए, तो मैच ड्रॉ की राह खुल सकती है। पर इसके लिए सिंगल-डबल की मशीनरी चलती रहनी चाहिए—डॉट-बॉल प्रेशर इस पिच पर असली दुश्मन है।
सेंट्रल की गेंदबाज़ी रणनीति में वैरिएशन होगा—सुबह एटैक मोड, फिर लंच के बाद रिवर्स की तलाश और आखिरी सत्र में स्पिनरों से चौड़ी ऑफ-स्टंप लाइन पर धैर्य की परीक्षा। फील्ड प्लेसमेंट में शॉर्ट मिड-विकेट और लेग-स्लिप जैसे कैचिंग पोजिशन देर तक खेल में रहेंगे, क्योंकि सिंगल रोकना साउथ की गति तोड़ सकता है।
फाइनल का बड़ा सबक यह भी है कि घरेलू टूर्नामेंट में लम्बी पारी खेलने की कला ही चयन की खिड़की खोलती है। राठौड़ ने करियर-परिभाषित पारी खेली—दोहरे शतक से चार रन दूर रह गए, फिर भी चयनकर्ताओं की नोटबुक में मोटे अक्षरों में नाम लिखवा दिया। पाटीदार पहले से भारतीय सर्किट में स्थापित नाम हैं, पर कप्तान के तौर पर ऐसे फाइनल में टोन सेट करना लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
साउथ की गेंदबाज़ी में गुरजपनीत और अंकित ने मेहनत से विकेट लिए, पर इकॉनमी नहीं थमी। फाइनल में जब रन-फ्लो नहीं रुके, तो कप्तान के लिए फील्ड स्प्रेड करना मजबूरी बनती है—यहीं से पार्टनरशिप लंबी होती है। चौथे दिन उन्हें एकदम उलटी रणनीति चाहिए—टाइट फील्ड, चौके से ज्यादा सिंगल रोकना, और जो बैटर सेट हो, उसके लिए अलग प्लान।
मैच को सेशन दर सेशन देखें तो तस्वीर और साफ दिखती है:
- पहला चरण: सेंट्रल की आक्रामक शुरुआत—पाटीदार ने टेम्पो सेट किया।
- मध्य चरण: राठौड़ का मैराथन—साझेदारियां बनीं, 500 पार संभव हुआ।
- टर्निंग पॉइंट: साउथ की पहली पारी में टॉप-ऑर्डर का जल्दी टूटना—149 पर ऑलआउट।
- रिस्पॉन्स: फॉलो-ऑन के बाद साउथ ने 129/2 से जूझने की कोशिश दिखाई, पर 233 का फासला बाकी।
मौसम अब तक क्रिकेट-फ्रेंडली रहा है, जिससे टेस्ट-मैच जैसी बराबरी का मौका मिला। ऐसे में मानसिक थकान असली फैक्टर बनती है—साउथ के ड्रेसिंग रूम में संदेश यही होगा कि 20-20 रन के छोटे-छोटे टार्गेट बनाओ, सेशन दर सेशन टिकते जाओ। सेंट्रल के लिए संदेश उलटा—हर 6-8 ओवर में कुछ नया, चाहे एंगल बदलना हो या फील्ड।
इस फाइनल का व्यापक असर भी है। दलीप स्तर पर फाइनल में दबाव झेलकर, लंबी पारी खेलकर, या किफायती स्पैल डालकर आप इंडिया ए की कतार में तेजी से ऊपर आते हैं। राठौड़, पाटीदार, सारांश जैन जैसे नामों के साथ सेन की दूसरी पारी की इकॉनमी भी चयनकर्ताओं की नजर में टिकेगी—क्योंकि फाइनल में कंट्रोल दिखाना साधारण बात नहीं।
अब समीकरण सीधा है। साउथ जोन को पहले घाटा मिटाना है—इसके लिए कम-से-कम एक शतकीय साझेदारी चाहिए। 80-100 ओवर बल्लेबाज़ी की तो तैयारी रखनी होगी। सेंट्रल को सुबह की ताजगी में गेंद को उतना ही बोलने देना है जितना सतह अनुमति दे, और जब बॉल नरम हो, तब फील्डिंग से रन रोककर गलती निकलवानी है।
अगर साउथ चौथे दिन स्टंप्स तक 100-120 ओवर बचे रहते हुए भी विकेट हाथ में रखता है, तो आखिरी दिन ड्रॉ का दरवाज़ा खुला रहेगा। लेकिन एक सत्र की ढिलाई भी मैच को सेंट्रल के नाम कर सकती है—362 की लीड का मतलब यही है कि आपको लगभग परफेक्ट क्रिकेट खेलनी होगी।
रणनीति, पिच का स्वभाव और आगे की राह
पिच तीसरे दिन के बाद फ्लैट हुई है, लेकिन बेंगलुरु की सतह शाम को स्पंज-बाउंस भी दिखाती है—यानी शॉर्ट गेंदें कभी-कभी नीची रहती हैं। साउथ के बल्लेबाज़ों को पुल-हुक पर रिस्क कम रखना होगा, खासकर नए स्पैल की शुरुआती 4-5 ओवर में। ड्राइव तब तक सीमित रखें जब तक गेंद बहुत ज्यादा ओवरपिच न हो—एज का जोखिम इस सतह पर देर तक बना रहता है।
सेंट्रल के स्पिनरों का रोल बढ़ेगा। वे चौड़े ऑफ-स्टंप का ट्रैक चुनेंगे, जहां बैटर को गेंद के पीछे आना पड़े, और शॉर्ट-लेग/लेग-स्लिप खेल में रहें। तेज गेंदबाज़ रिवर्स स्विंग की खिड़की ढूंढेंगे—35वें ओवर के बाद गेंद की चमक एक तरफ रखने की कोशिशें दिख सकती हैं।
मैच की नसें फिलहाल सेंट्रल के हाथ में हैं। लीड इतनी है कि उन्हें सिर्फ धैर्य चाहिए। साउथ के लिए कहानी प्रेरणादायक तभी बनेगी जब टॉप-5 में से दो खिलाड़ी 60-60 ओवर तक टिक जाएं। यह फाइनल अब न सिर्फ स्कोर की लड़ाई है, बल्कि इरादे और सत्र-प्रबंधन की भी परीक्षा है।
आँकड़ों से परे, यह मुकाबला एक और बात सिखा रहा है—घरेलू क्रिकेट में ‘लंबे स्पेल की सादगी’ मैच जिताती है। सेंट्रल ने यही किया: बैटरों ने समय खरीदा, गेंदबाज़ों ने गलती की प्रतीक्षा की, और फील्डरों ने दबाव बनाए रखा। अगले दो दिनों में भी यही तीनों धुरी मैच का फैसला लिखेंगी।