वाराणसी। महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिये महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है।उनको समाज में उचित व सम्मानजनक स्थिति पर पहुँचाने के लिए, हिंसा फाउंडेशन ने महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम आरम्भ किये हैं जो अलग-२ पृष्ठभूमि की महिलाओं के आत्म सम्मान, आंतरिक शक्ति और रचनात्मकता को पोषण करने के लिए ठोस आधार प्रदान करते हैं।ये बातें महिला सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन विषयक गोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक श्री मंगला प्रसाद ने कही ।
प्राचार्य डॉ मोहम्मद आरिफ़ ने कहा कि महिलाएं आज अपने कौशल, आत्मविश्वास और शिष्टता के आधार पर दुनिया की किसी भी चुनौती को संभालने में सक्षम हैं। वे आगे आ रहीं हैं और अपने परिवारों, अन्य महिलाओं और समाज के लिए शांति और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में स्थापित हो रही है।
गोष्ठी में अरुण कुमार ,सुशील कुमार गौतम,रमेश चंद,अर्चना सिंह ,रीता पटेल ,संतोष कुमार,वीरेंद्र पटेल,प्रभु नारायण,मुस्तफा और सुदामा आदि मौजूद रहे। शिविर का मार्गदर्शन कार्यक्रम अधिकारी डॉ आभा देवी तथा संचालन सुशील कुमार ने किया ।
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